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न्यौता और चुनौती -शैलेन्द्र -Hindi Poetry-कविता-Hindi Poem | Kavita Shailendra Part 2
जिस ओर करो संकेत मात्र
जिस ओर करो संकेत मात्र, उड़ चले विहग मेरे मन का,
जिस ओर बहाओ तुम स्वामी, बह चले श्रोत इस जीवन का!
तुम बने शरद के पूर्ण चांद, मैं बनी सिन्धु की लहर चपल,
मैं उठी गिरी पद चुम्बन को, आकुल व्याकुल असफल प्रतिपल,
जब-जब सोचा भर लूं तुमको अपने प्यासे भुज बन्धन में,
तुम दूर क्रूर तारक बन कर, मुस्काए निज नभ आंगन में,
आहें औ’ फैली बाहें ही इतिहास बन गईं जीवन का!
जिस ओर करो संकेत मात्र!
तुम काया, मैं कुरूप छाया, हैं पास-पास पर दूर सदा,
छाया काया होंगी न एक, है ऎसा कुछ ये भाग्य बदा,
तुम पास बुलाओ दूर करो, तुम दूर करो लो बुला पास,
बस इसी तरह निस्सीम शून्य में डूब रही हैं शेष श्वास,
हे अदभुद, समझा दो रहस्य, आकर्षण और विकर्षण का!
जिस ओर करो संकेत मात्र!
(1945 में रचित)
निंदिया
पास देख अनजान अतिथि को–
दबे पाँव दरवाज़े तक आ,
लौट गई निंदिया शर्मीली!
दिन भर रहता व्यस्त, भला फुर्सत ही कब है?
कब आएँ बचपन के बिछुड़े संगी-साथी,
बुला उन्हें लाता अतीत बस बीत बातचीत में जाती
शून्य रात की घड़ियाँ आधी
और झाँक खिड़की से जब तब
लौट-लौट जाती बचारी नींद लजीली!
रजनी घूम चुकी है, सूने जग का
थककर चूर भूल मंज़िल अब सोता है पंथी भी मग का
कब से मैं बाहें फैलाए जलती पलकें बिछा बुलाता
आजा निंदिया, अब तो आजा!
किन्तु न आती, रूठ गई है नींद हठीली!
(1945 में रचित)
आज
आज मुझको मौत से भी डर नहीं लगता
राह कहती,देख तेरे पांव में कांटा न चुभ जाए
कहीं ठोकर न लग जाए;
चाह कहती, हाय अंतर की कली सुकुमार
बिन विकसे न कुम्हलाए;
मोह कहता, देख ये घरबार संगी और साथी
प्रियजनों का प्यार सब पीछे न छुट जाए!
किन्तु फिर कर्तव्य कहता ज़ोर से झकझोर
तन को और मन को,
चल, बढ़ा चल,
मोह कुछ, औ’ ज़िन्दगी का प्यार है कुछ और!
इन रुपहली साजिशों में कर्मठों का मन नहीं ठगता!
आज मुझको मौत से भी डर नहीं लगता!
आह, कितने लोग मुर्दा चांदनी के
अधखुले दृग देख लुट जाते;
रात आंखों में गुज़रती,
और ये गुमराह प्रेमी वीर
ढलती रात के पहले न सो पाते!
जागता जब तरुण अरुण प्रभात
ये मुर्दे न उठ पाते!
शुभ्र दिन की धूप में चालाक शोषक गिद्ध
तन-मन नोच खा जाते!
समय कहता–
और ही कुछ और ये संसार होता
जागरण के गीत के संग लोक यदि जगता!
आज मुझको मौत से भी डर नहीं लगता!
(1947 में रचित)
हैदराबाद और यू.एन. ओ.
पेरिस ! रात सोलह सितंबर की,
संयुक्त राष्ट्र संघ की सुरक्षा सम्मिति
हैदराबाद का सवाल लेकर बैठी !
नवाब मुइन नवाज़ जंग ने अपील की–
दुहाई है रक्षा करो, घड़ी नहीं ढील की !
उठे रमास्वामी मुदलियार
ब्रिटिश सरकार के पुराने पेशकार
अब कांग्रेस के, प्रतिनिधि देश के !
बोले : राष्ट्र्संघ में हक नहीं हैदराबाद का
अवसर मत दो फ़रियाद का !
चक्र घटनाओं का ऎसा चला
मजबूरन करना पड़ा हमला
मिल-बाँटकर खाते तो क्या था
निज़ाम ग़ैर नहीं, अपना था !
फिर भी, निज़ाम के दोस्तों के दिल थे दहले से
कैडोगन तैयार थे पहले से !
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