नेता जी ने मुझसे पूछा-गुरभजन गिल-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Gurbhajan Gill
मँहगे खद्दर के कुर्ते पाज़ामे वाले
नेताजी ने मुझसे पूछा कौन हैं यह लोग?
अचानक कुकुरमुत्तों-से घूरों पर उगे
कुश के शूलों जैसे शीशे की किरचों जैसे
बहुत तीखा बोलते हैं हमारे ख़िलाफ
तुम लोगों के बीच में रहते हो, बताना।
यह देश की सुरक्षा के लिए
ख़तरा बन सकते हैं किसी दिन।
मैं कुछ बोला, चुप रहा, फिर सँभला
न अस्थिर हुआ और प्रत्युत्तर में कहा,
शीशा दिखाने आए हैं यह लोग
तुम्हारे अलगाए किनारे हैं
इनको अपने नहीं देश हित प्यारे हैं।
सलवटदार नीली पगड़ी वाले भी आए
आँखों पर काली ऐनक लगाए
सफे़द विलायती बूटों वाले।
उन्होंने कुछ न पूछा, सिर्फ़ इतना कहा,
काँटों से कहो, हमारी राह से हट जाएँ
नहीं तो हमें हटाना आता है।
नेताजी के उड़नखटोले का धरती पर उतारा है।
हट जाओ दूर, यदि चाम प्यारा है
मैं हँसा, पर उनके जाने के बाद।
फिर वह दोनों इकट्ठे आए।
बहुत कुछ साथ लाए।
रुतबे, मर्तबे, कुर्सियाँ
सोना चाँदी, झूले पालने
और और चमकीला बहुत कुछ।
कहने लगे अब बोल!
बोलने का क्या लेगा?
तेरी चुप तुझे मँहगी पड़ सकती है।
यह आख़िर मौका है।
पत्थर हो जाएगा।
मैंने कहा, राह का पत्थर नहीं
मील का पत्थर बनूँगा।
सुनो यदि सुन सकते हो।
बेगाने नहीं यह
यह वही लोग हैं
हाशिए से बाहर धकेले हुए।
वही हैं मुद्दतों से अके थके।
जिनको देखकर आप हो हक्के बक्के।
जिनके स्कूलों में टाट नदारद
बैठने के लिए बोरियाँ
घर से लाने वाले।
कच्ची लस्सी समझते हैं
जिनको पढ़ाने वाले।
जिनके कमरों में उमस
आरै दुर्गन्ध।
जिनके अस्पतालों में कुछ नहीं
जीवन डोर लम्बी करने वाला।
दर्दों की लम्बी शृंखला
घर से चिता तक।
यह वही लोग हैं
तेज़ रफ़्तार सड़कों से भगाए हुए।
जिनका पैदल पथ और फुटपाथ
कब्जाधारियों के पास गिरवी है
तुम्हारी शह की बदौलत।
यह वही लम्बे-ऊँचे लोग हैं
जो हेलीकाप्टर में से देखते
बहुत नन्हे लगते हैं।
अब जवान हो गए हैं यह लोग।
अभी तक सिकुड़े बैठे थे।
कहीं बाहर से नहीं आए
वही उठे हैं
तुम्हारी बेरुखी के ख़िलाफ़
तुम्हारी सूची के आँकड़े
अब ख़ुदपरस्त हस्ती बन गए हैं।
रेंगने वाले नहीं रहे
उड़ते नाग बन गए हैं।
तुम्हारी नीली पीली और लाल बत्तियों
और हूटरों के सताए हुए।
काली ऐनकों में से तुम्हें
यह काले, पीले दिखते
शरीर भी इनसान हैं।
टंकियों पर चढ़ने वाले
हर मौसम में हक़ माँगते
तिल तिल कर मरने वाले
लाठियाँ, गोलियाँ और बौछारें
नंगी देह पर झेलने वाले
अपने ही भाई बंधु हैं।
अब मुझसे क्या पूछते हो?
धरती पर उतरो, ओ कुर्सी के पुत्रों।