नीलकंठ-प्रदीप सिंह-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Pradeep Singh
देवों और दैत्यों के
उकसावे में आकर किए
सागर-मंथन से निकले
कितने ही बहुमूल्य रत्न
पर
तुम्हें पिलाया गया केवल विष
जिसे
तुम न निगल पाए
न उगल ही सके
तो बना
दिया तुम्हें
‘नीलकंठ’
और
पूजा भी जा रहा है
तुम्हें सदियों से
मगर
हे शिव!
आज तक
ये कोई नहीं जानता
कि
अन्दर से तुम्हारा कंठ
कितना ज़ख्मी है।