निर्जन सृष्टि-आवाज़ों के घेरे -दुष्यंत कुमार-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Dushyant Kumar
कुलबुलाती चेतना के लिए
सारी सृष्टि निर्जन
और…
कोई जगह ऐसी नहीं
सपने जहाँ रख दूँ ।
दृष्टि के पथ में तिमिर है
औ’ हृदय में छटपटाहट
जिन्दगी आखिर कहाँ पर फेंक दूँ मैं
कहाँ रख दूँ ?