नालि इआणे दोसती कदे न आवै रासि-गुरू अंगद देव जी-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Guru Angad Dev Ji
नालि इआणे दोसती कदे न आवै रासि ॥
जेहा जाणै तेहो वरतै वेखहु को निरजासि ॥
वसतू अंदरि वसतु समावै दूजी होवै पासि ॥
साहिब सेती हुकमु न चलै कही बणै अरदासि ॥
कूड़ि कमाणै कूड़ो होवै नानक सिफति विगासि ॥3॥474॥
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