नारी गही बैद सोऊ बेनि गो अनारी सखि-गयाप्रसाद शुक्ल ‘सनेही’-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Gayaprasad Shukla Sanehi
नारी गही बैद सोऊ बेनि गो अनारी सखि,
जाने कौन वुआधि याहि गहि गहि जाति है ।
कान्ह कहै चौंकत चकित चकराति ऐसी,
धीरज की भिति लखि ढहि ढहि जाती है ।।
कही कहि जाति नहिं, सही सहि जाति नहिं,
कछू को कछू सनेही कहि कहि जाति है ।
बहि बहि जात नेह, दहि, दहि जात देह,
रहि रहि जाति जान र्तहि रहि जाति है ।।