नाम-वृक्ष-कविता-नरेश मेहता-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Naresh Mehta
मैं तो अनाम था प्रिया!
तुमने ही मुझे
अपने नेत्रों के रुद्राक्ष की
यह माला पहना दी।
और एक दीक्षा-नाम दे दिया;
वृक्ष था—
कदंब बना दिया।
तुम चाहोगी।
तो धूप का पीतांबर धारण कर
उत्सव-वृक्ष भी लगूँगा
ताकि रास संभव हो सके।
स्पर्श का
वह कैसा अलौकिक आह्लाद था प्रिया! कि
अब जब भी
कोई पत्र अंकुरित होने को होता है—
तो, कीर्तन का महाभाव
पद का लालित्य
गुलाल की रंगमयता—
प्रिया! पूरी देह
रास-स्थली
संकेत-मंडप लगने लगती है।
मत बाँधो अपनी बाहुओं में
मेरी यह कदंब संज्ञा भी झर जाएगी
और मैं तब
केवल नाम-वृक्ष रह जाऊँगा।
प्रिया! केवल तुम्हारा नाम-वृक्ष!!