नभ में चपला चपल चमकती-नदी किनारे-गोपालदास नीरज-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Gopal Das Neeraj
नभ में चपला चपल चमकती।
एक लकीर नील नभ-तल पर पल में बनकर मिट जाती है,
जग के तिमिर-पूर्ण कोने में और अँधेरा कर जाती है,
पर जो बनती रेख हृदय पर कफन फाड़ कर अरे झलकती!
नभ में चपला चपल चमकती।
भूली हुई कपोती वह बैठी जो तरु की एक डाल पर,
प्रतिपल देख रही बिजली पर घूम रहा मन नीड़, बाल पर,
जाने क्यों भीषण रव सुन-सुन उसकी कोमल छाती कंपती!
नभ में चपला चपल चमकती।
पहले ही गिरकर बिजली जिसके सुख-सपने मिटा चुकी है,
और हाय! जिसकी सोने-सी दुनिया सहसा जला चुकी है,
आज ख़ाक पर भी उस घर की निष्ठुर नृत्य भयंकर करती!
नभ में चपला चपल चमकती।
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