नगर के सिग्नल पर घूमे हाथ फैलाए-कविता -दीपक सिंह-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Deepak Singh
नगर के सिग्नल पर घूमे हाथ फैलाए।
मजलूम है मासूम है भूख कैसे मिटाए।।
गाड़ी रुकते दौड़े वो,
भूख की लाचारी में ।
जब धुतकारे उसको,
तो आंखों में पानी आए।।
दिल साफ है पर मैले कपड़े,
जो नेक बनते उसे भगाएं ।
नगर के सिग्नल पर घूमे हाथ फैलाए,
मजलूम है मासूम है भूख कैसे मिटाए।।
शाम दो चाट लगा कर,
छीने उसकी मेहनत को।
यह मंजर जो देखू मैं,
मेरा दिल तड़प जाए।।
देख इसां की शैतानी को,
खुद शैतान उसको गुरु बनाए ।
नगर के सिग्नल पर घुमे हाथ फैलाए।
मजलूम है मासूम है भूख कैसे मिटाए ।।
फुटपाथों पर टाट बिछाए,
सोने की तैयारी में।
रात भर सिसकी लेता,
मां की ममता कहां से पाए।
नींद लगे वो भूखा सो जाए,
सुबह होते ही सांसे थम जाए ।।
नगर के सिग्नल पर घूमे हाथ फैलाए ।
मजलूम है मासूम है भूख कैसे मिटाए ।।
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