धुंधली नदी में-सात गीत-वर्ष -धर्मवीर भारती-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Dharamvir Bharati
आज मैं भी नहीं अकेला हूं
शाम है‚ दर्द है‚ उदासी है।
एक खामोश सांझ–तारा है
दूर छूटा हुआ किनारा है
इन सबों से बड़ा सहारा है।
एक धुंधली अथाह नदिया है
और भटकी हुई दिशा सी है।
नाव को मुक्त छोड़ देने में
और पतवार तोड़ देने में
एक अज्ञात मोड़ लेने में
क्या अजब–सी‚ निराशा–सी‚
सुख–प्रद‚ एक आधारहीनता–सी है।
प्यार की बात ही नहीं साथी
हर लहर साथ–साथ ले आती
प्यास ऐसी कि बुझ नहीं पाती
और यह जिंदगी किसी सुंदर
चित्र में रंगलिखी सुरा–सी है।
आज मैं भी नहीं अकेला हूं
शाम है‚ दर्द है‚ उदासी है।