धर्म परिवर्तन-गुरभजन गिल-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Gurbhajan Gill
धर्म परिवर्तन
इस तरह नहीं होता माँ।
माँ ने छःसाल के पुत्र को
झिड़कते हुए कहा,
नालायक!
तू भंगियों के घर की
रोटी खा गया।
अब तू भंगी हो गया।
तूने अपना
धर्म भ्रष्ट कर लिया
तेरा क्या किया जाए?
मासूम बच्चा
बड़ी मासूमियत से बोला
माँ, मैंने सिर्फ़ एक बार
उनके घर की रोटी खा ली
तो मैं भंगी हो गया!
पर वह तो
हमारे घर की
बासी रोटी रोज़ खाते हैं,
वह तो ब्राह्मण नहीं हुए।
यह कहकर बच्चा सिसक पड़ा।
चुप कराती माँ ने
सिर्फ़ इतना कहा
तेरे तक पहुँचने के लिए
मुझे अभी बहुत वक्त लगेगा।
मुझे तेरे घर जन्मना पड़ेगा
जीवै पुत्र जी
नन्हे!
तेरी बड़ी सोच को सलाम।