दोस्त तू ही सोना चांदी रे-विकास कुमार गिरि -Hindi Poetry-कविता-Hindi Poem | Kavita Vikas Kumar Giri
दोस्त तू ही सोना चांदी रे…..
कभी जो मैं रुठूँ तो तू मनाए
कभी जो तू रूठे तो मैं मनाऊं
चलती रहे इसी तरह जिन्दगानी रे
दोस्त तू ही सोना चांदी रे…..
खेल-खेल में कभी तू जीते
तो कभी मै हारूँ
कभी तू प्यार से मुझे मारे
तो कभी मै तुझे मारूँ
कभी तू मेरे साथ करे शरारत कभी करे मनमानी रे
दोस्त तू ही सोना चांदी रे…..
ये सोना चांदी तो धातु ऐसी
जिनकी बाजारों मे लगती कीमत
जिसके पास हो पैसे उन्हें ही इसे
खरीदने की होती चाहत इनसे तो हमारी दोस्ती अच्छी
जिसमें न है रंग, वर्ण और जाती-धर्मों का बंधन
जिनकी लगती हो बाजारों में कीमत
उनसे क्या दिल लगानी रे
दोस्त तू ही सोना चांदी रे…..
जब कोई दिक्कत हो तो तू ही काम आए
कठिन परिस्तिथियों में तू हमें समझाए
अच्छे काम के लिए तू हमेशा सराहे
तो कभी किसी के सामने मेरा मजाक उड़ाए
मै आज जो कुछ भी हूँ दोस्त तेरी ही मेहरबानी रे
दोस्त तू ही सोना चांदी रे…..