देर होती है नद को-प्रशांत पारस-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Prashant Paras
देर होती है नद को,
सागर से मिल जाने में,
बूँद-बूँद व्यर्थ नही होता,
सूरज की तप से सूख जाने में,
कोटर से पंछी निकलता है,
क्षितिज में समा जाने को,
व्यर्थ नही करता वह जीवन,
साहस की सीमा लाँघ जाने में
वीर तू क्यों डरा है,
सहम कर क्यो मौन खड़ा है,
जब तक न मिले मंज़िल तुझे,
तब तक न तेरे कदमो को विराम है
नव किरण है ये नया नाम है
नई आगाज है ये नया अंजाम है
गिर पड़ा तो क्या रोता है
उठ दौड़ देख क्या होता है
तेरे हौसले से हालात का वक्ष,
छलनी छलनी होता है
तू जोर लगाता होती सुबह
तू जोर लगाता होती शाम है
नई आगाज ये नया अंजाम है
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