देर रात का फोन-प्रदीप सिंह-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Pradeep Singh
देर रात
बजती
फोन की घण्टी
डरा देती है हमें
बुरी ख़बर वाले टेलीग्राम की माफ़िक
और
हमें जाने क्यों
आ जाते हैं याद
कुनबे के सभी उम्रदराज़ लोग
जो
खड़े हैं
उम्र की अंतिम दहलीज़ पर
कंपकंपाते हाथों से
उठाते हैं फोन
और
रख देते हैं
कहकर ‘रॉन्ग नंबर’
तार निकलता है ख़ाली
भूल जाते हैं
फिर
ज़िन्दगी के दिन गिनते
सभी
उम्रदराज़ लोग
जो
हो आए थे याद
देर रात
फोन की घण्टी बजने से।
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