देखना, एक दिन-चैत्या-नरेश मेहता-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Naresh Mehta
देखना—
एक दिन चुक जाएगा।
यह सूर्य भी,
सूख जाएँगे सभी जल
एक दिन,
हवा
चाहे मातरिश्वा हो
नाम को भी नहीं होगी
एक दिन,
नहीं होगी अग्नि कोई
और कैसी ही,
और उस दिन
नहीं होगी मृत्तिका भी।
मगर ऐसा दिन
सामूहिक नहीं है भाई!
सबका है
लेकिन पृथक्—
वह एक दिन,
हो रहा है घटित जो
प्रत्येक क्षण
प्रत्येक दिन—
वह एक दिन।