दुनिया कहीं जो बनती है मिटती ज़रूर है-ग़ज़लें-नौशाद अली(नौशाद लखनवी)-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Naushad Ali
दुनिया कहीं जो बनती है मिटती ज़रूर है
पर्दे के पीछे कोई न कोई ज़रूर है
जाते हैं लोग जा के फिर आते नहीं कभी
दीवार के उधर कोई बस्ती ज़रूर है
मुमकिन नहीं कि दर्द-ए-मोहब्बत अयाँ न हो
खिलती है जब कली तो महकती ज़रूर है
ये जानते हुए कि पिघलना है रात भर
ये शम्अ का जिगर है कि जलती ज़रूर है
नागिन ही जानिए उसे दुनिया है जिस का नाम
लाख आस्तीं में पालिए डसती ज़रूर है
जाँ दे के भी ख़रीदो तो दुनिया न आए हाथ
ये मुश्त-ए-ख़ाक कहने को सस्ती ज़रूर है
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