दस बालतणि बीस रवणि तीसा का सुंदरु कहावै -सलोक-गुरु नानक देव जी-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Guru Nanak Dev Ji
दस बालतणि बीस रवणि तीसा का सुंदरु कहावै ॥
चालीसी पुरु होइ पचासी पगु खिसै सठी के बोढेपा आवै ॥
सतरि का मतिहीणु असीहां का विउहारु न पावै ॥
नवै का सिहजासणी मूलि न जाणै अप बलु ॥
ढंढोलिमु ढूढिमु डिठु मै नानक जगु धूए का धवलहरु ॥३॥(138)॥