दर्द दिया है-दर्द दिया है-गोपालदास नीरज-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Gopal Das Neeraj
दर्द दिया है, अश्रु स्नेह है, बाती बैरिन श्वास है,
जल-जलकर बुझ जाऊँ, मेरा बस इतना इतिहास है !
मैं ज्वाला का ज्योति-काव्य
चिनगारी जिसकी भाषा,
किसी निठुर की एक फूँक का
हूँ बस खेल-तमाशा
पग-तल लेटी निशा, भाल पर
बैठी ऊषा गोरी,
एक जलन से बाँध रखी है
साँझ-सुबह की डोरी
सोये चाँद-सितारे, भू-नभ, दिशि-दिशि स्वप्न-मगन है
पी-पीकर निज आग जग रही केवल मेरी प्यास है !
जल-जलकर बुझ जाऊँ, मेरा बस इतना इतिहास है !!
विश्व न हो पथ – भ्रष्ट इसलिए
तन – मन आग लगाई,
प्रेम न पकड़े बाँह शलभ की
खुद ही चिता जलाई
रोम-रोम से यज्ञ रचाया
आहुति दी जीवन की,
फिर भी जब मैं बुझा
न कोई आँख बरसने आई
किसे दिखाऊँ दहन-दाह, किस अंचल में सो जाऊँ
पास बहुत है पतझर मुझसे, दूर बहुत मधुमास है !
जल-जलकर बुझ जाऊँ, मेरा बस इतना इतिहास है !!
यह शलभों का प्यार, किसी
के नयनों की यह छाया,
केवल तब तक है, जब तक
बस एक न झोंका आया
बुझते ही यह लौ, चुकते ही
यह सनेह, यह बाती
सृष्टि मुझे भूलेगी जैसे
तुमने मुझे भुलाया
बुझे दिये का मोल नहीं कुछ क्यों मिट्टी के घर में?
सोच-सोच रो रहा गगन, औ’ धरती पडी उदास है!
जल-जलकर बुझ जाऊँ, मेरा बस इतना इतिहास है !!
सीनाज़ोरी हवा कर रही
है नाराज़ अंधेरा,
इतना तो जल चुका मगर
है अब भी दूर सवेरा
तिल-तिल घुलती देह, रिस
रहा बूँद-बूँद जीवन-घट,
कुछ क्षण के ही लिए और है
अपना रैन – बसेरा
यद्यपि हूँ लाचार सभी विधि निठुर नियति के आगे
फिर भी दुनिया को सूरज दे जाने की अभिलाष है !
जल-जलकर बुझ जाऊँ, मेरा बस इतना इतिहास है !!
मुझे लगा है शाप, न जब तक
रात प्रात बन जाये,
तब तक द्वार-द्वार मेरी लौ
दीपक – राग सुनाये
जब तक खुलती नहीं बाग़ की
पलकें फूलों वाली
तब तक पात-पात पर मेरी
किरन सितार बजाये
आये-जाये साँस कि चाहे रोये-गाये पीड़ा
मैं जागूँगा जब तक आती धूप न सबके पास है !
जल-जलकर बुझ जाऊँ, मेरा बस इतना इतिहास है !!