दर्द कुछ दिन तो मेह्माँ ठहरे-लावा -जावेद अख़्तर-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Javed Akhtar
दर्द कुछ दिन तो मेह्माँ ठहरे
हम बिज़द हैं कि मेज़बाँ ठहरे
सिर्फ़ तन्हाई सिर्फ़ वीरानी
ये नज़र जब उठे जहाँ ठहरे
कौन-से ज़ख़्म पर पड़ाव किया
दर्द के क़ाफ़ले कहाँ ठहरे
कैसे दिल में ख़ुशी बसा लूँ मैं
कैसे मुटठी में ये धुआँ ठहरे
थी कहीं मसलेहत कहीं जुअर्त
हम कहीं इनके दरमियाँ ठहरे