थकित-चकित-भ्रमित-भग्न मन-खिचड़ी विप्लव देखा हमने -नागार्जुन-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Nagarjun
थकित-चकित-भ्रमित-भग्न मन को
स्फूर्ति देता है किसी समर्थ का सहारा
तो क्या मुझे भी प्रभु की सत्ता स्वीकार होगी
तो क्या मुझे भी आस्तिक बन जाना होगा?
सुख-सुविधा और ऐश-आराम के साधन
डाल देते हैं दरार प्रखर नास्तिकता की भीत में
बड़ा ही मादक होता है ‘यथास्थिति’ का शहद
बड़ी ही मीठी होती है ‘गतानुगतिकता’ की संजीवनी
धर्मभीरु पारंपरिक जन-समुदायों की
बूँद-बूँद संचित श्रद्धा के सौ-सौ भाँड़
जमा हैं, जमा होते रहेंगे
मठों के अंदर…
तो क्या मुझे भी बुढ़ापे में ‘पुष्टई’ के लिए
वापस नहीं जाना है किसी मठ के अंदर?
(1975)