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तेवर चालीसा -रमेशराज -Hindi Poetry-कविता-Hindi Poem | Kavita Rameshraj Tewar-Chalisa Part 2
हर अनीति से युद्ध लड़
हर अनीति से युद्ध लड़
क्रान्ति-राह पर यार बढ़, बैठ न मन को मार कर।
खल का नशा उतार दे
शब्दों को तलवार दे, चल दुश्मन पर वार कर।
ले हिम्मत से काम तू
होती देख न शाम तू, रख हर कदम विचार कर।
घनी वेदना को हटा
घाव-घाव मरहम लगा, पतझड़ बीच बहार कर।
अनाचार-तम-पाप की
जग बढ़ते संताप की, रख दे मुण्डि उतार कर।
कुंठा से बाहर निकल
अपने चिन्तन को बदल, अब पैने हथियार कर।
कछुए जैसी चाल का
कछुए जैसी चाल का
कुंठाओं के जाल का, मत बनना भूगोल तू।
थर-थर कंपित खाल का
थप्पड़ खाते गाल का, मत बनना भूगोल तू।
कायर जैसे हाल का
किसी सूखते ताल का, मत बनना भूगोल तू।
छोटे-बड़े दलाल का
या याचक के भाल का, मत बनना भूगोल तू।
केवल रोटी-दाल का
किसी पराये माल का, मत बनना भूगोल तू।
उत्तरहीन सवाल का
पश्चाताप-मलाल का, मत बनना भूगोल तू।
क्या घबराना धूप से
क्या घबराना धूप से
ताप-भरे लू-रूप से, आगे सुख की झील है।
दुःख ने घेरा, क्यों डरें
घना अँधेरा, क्यों डरें, हिम्मत है-कंदील है।
भले पाँव में घाव हैं
कदम नहीं रुक पायँगे, क्या कर लेगी कील है।
खुशियों के अध्याय को
तरसेगा सच न्याय को, ये छल की तहसील है।
है बस्ती इन्सान की
हर कोई लेकिन यहाँ बाज गिद्ध वक चील है।
पीड़ा का उपचार कर
‘भाग लिखें की’ आज सुन, चलनी नहीं दलील है।
जीवन कटी पतंग रे
जीवन कटी पतंग रे
हुई व्यवस्था भंग रे, अब तो मुट्ठी तान तू।
दुःख ही तेरे संग रे
स्याह हुआ हर रंग रे, अब तो मुट्ठी तान तू।
कुचलें तुझे दबंग रे
बन मत और अपंग रे, अब तो मुट्ठी तान तू।
गायब खुशी-तरंग रे
सब कुछ है बेढंग रे, अब तो मुट्ठी तान तू।
लड़नी तुझको जंग रे
बजा क्रान्ति की चंग रे, अब तो मुट्ठी तान तू।
पापी के सर ताज रे
पापी के सर ताज रे
अब गुण्डों का राज रे, बड़े बुरे हालात हैं।
कैसा मिला स्वराज रे
सब बन बैठे बाज रे, बड़े बुरे हालात हैं।
गिरे बजट की गाज रे
पीडि़त बहुत समाज रे, बड़े बुरे हालात हैं।
ऐसे ब्लाउज आज रे
जिनमें बटन न काज रे, बड़े बुरे हालात हैं।
नेता खोयी लाज रे
सब को छलता आज रे, बड़े बुरे हालात हैं।
लेपे चन्दन आज रे
जिनके तन में खाज रे, बड़े बुरे हालात हैं।
तम में आये नूर को
तम में आये नूर को
प्रेम-भरे दस्तूर को, चलो बचायें आज फिर ।
विधवा खुशियों के लिये
चूनर लहँगा चूडि़याँ, मेंहदी लायें आज फिर ।
घर सुख का जर्जर हुआ
चल कलई से पोत कर रंग जमायें आज फिर।
जली बहू की चीख की
जिस नम्बर से कॉल है, उसे मिलायें आज फिर।
चर्चा हो फिर क्रान्ति पै
मन पर छायी क्लान्ति पै, करें सभाएँ आज फिर।
जनक छन्द में तेवरी
भरकर इसमें आग-सी, चलो सुनायें आज फिर।
अरसे से बीमार को,
अरसे से बीमार को,
मन पर चढ़े बुखार को, पैरासीटामॉल हो।
फिर दहेज के राग ने
बहू जलायी आग ने, अब उसको बरनाॅल हो।
छद्मरूपता यूँ बढ़ी
छोटी-सी दूकान भी, तनती जैसे मॉल हो।
तू चाहे क्यों प्यार में
स्वागत या सत्कार में मीठ-मीठा ऑल हो।
मरु में भी ऐसा लगा
करे शीत ज्यों रतजगा, आया स्नोफॉल हो।
वो इतना बेशर्म था
यूँ खेला जज्बात से, जैसे कोई बॉल हो।
रति की रक्षा हेतु नित
रति की रक्षा हेतु नित
लिये विरति के भाव है, जनक छंद में तेवरी।
करे निबल से प्यार ये
खल को दे नित घाव है, जनक छंद में तेवरी।
इसमें नित आक्रोश है
दुष्टों पर पथराव है, जनक छंद में तेवरी।
अगर बदलता कथ्य तो
शिल्प गहे बदलाव है, जनक छंद में तेवरी।
शे’र नहीं रनिवास का
तेवर-भरा रचाव है, जनक छंद में तेवरी।
पापी के सम्मान में,
पापी के सम्मान में,
हर खल के गुणगान में, हमसे आगे कौन है!
परनिन्दा में हम जियें
झूठ-भरे व्याख्यान में, हमसे आगे कौन है!
दंगे और फ़साद की
अफवाहों की तान में, हमसे आगे कौन है!
घपलों में अव्वल बने
घोटालों के ज्ञान में, हमसे आगे कौन है!
बेचें रोज जमीर को
खल जैसी पहचान में, हमसे आगे कौन है!
अमरीका के खास हम
पूँजीवाद उठान में, हमसे आगे कौन है!
लेकर नाम कबीर का
अवनति के उत्थान में, हमसे आगे कौन है!
ब्लू फिल्मों को देखकर
आज रेप-अभियान में, हमसे आगे कौन है!
हम सबसे पीछे खड़े
बोल रहे मैदान में हमसे आगे कौन है!
भीख माँगकर विश्व से
कहें-‘बताओ दान में हमसे आगे कौन है’!