तू किसी पे जाँ को निसार कर दे कि दिल को क़दमों में डाल दे-लावा -जावेद अख़्तर-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Javed Akhtar
तू किसी पे जाँ को निसार कर दे कि दिल को क़दमों में डाल दे
कोई होगा तेरा यहाँ कभी ये ख़याल दिल से निकाल दे
मिरे हुक्मरां भी अजीब हैं कि जवाब लेके वो आए हैं
मुझे हुक्म है कि जवाब का हमें सीधा-सीधा सवाल दे
रगो-पै में जम गया सर्द ख़ूँ न मैं चल सकूँ न मैं हिल सकूँ
मिरे ग़म की धूप को तेज़ कर, मिरे ख़ून को तू उबाल दे
वो जो मुस्कुरा के मिला कभी तो ये फ़िक्र जैसे मुझे हुई
कहूँ अपने दिल का जो मुद्दआ, कहीं मुस्कुरा के न टाल दे
ये जो ज़हन दिन की है रौशनी तो ये दिल है रात में चाँदनी
मुझे ख्वाब उतने ही चाहिएं ये ज़माना जितने ख़याल दे