तुम भी कुछ हो-कविताएँ-केदारनाथ अग्रवाल-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Kedarnath Agarwal
तुम भी कुछ हो
लेकिन जो हो,
वह कलियों में
रूप-गन्ध की लगी गांठ है
जिसे उजाला
धीरे धीरे खोल रहा है।
यह जो
नग दिये के नीचे चुप बैठा है,
इसने मुझको
काट लिया है,
इस काटे का मंत्र तुम्हारे चुंबन में है,
तुम चुंबन से
मुझे जिला दो।