तुम और मैं- भग्नदूत अज्ञेय- सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन “अज्ञेय”-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Sachchidananda Hirananda Vatsyayan Agyeya,
मैं मिट्टी का दीपक, मैं ही हूँ उस में जलने का तेल,
मैं ही हूँ दीपक की बत्ती, कैसा है यह विधि का खेल!
तुम हो दीप-शिखा, मेरे उर का अमृत पी जाती हो-
जला-जला कर मुझ को ही अपनी तुम दीप्ति बढ़ाती हो।
तुम हो प्रलय-हिलोर, तुम्हीं हो घोर प्रभंजन झंझावात,
तुम ही हो आलोक-स्तम्भ, कर देती हो आलोकित रात।
मैं छोटी-सी तरिणी-सा तेरी लपेट में बहता हूँ-
फिर भी पथ-दर्शन की आशा से चोटें सब सहता हूँ।
दिल्ली जेल, नवम्बर, 1931