ताबीज़-1-कविता-नज़ीर अकबराबादी-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Nazeer Akbarabadi
अब तो लिख दो हज़रत मुझे कोई ऐसा ताबीज़।
हो रहूं जिससे मैं गुल के गले का ताबीज़॥
हम तो क्या हैं कि फ़रिश्ते के दिल छल लें।
आन ऐसा है यह हाथ का छल्ला ताबीज़॥
क्यों न हैकल में असर होवे कि उसका हर एक।
हुस्न में सीना पसीना है यह पहुंचा ताबीज॥
कुछ न कुछ आज तो हम तुमसे निशाना लेंगे।
या यह जं़जीर नई या सुनहरा ताबीज़॥
तप तिजारी के लिए चाहिए गंडा ताबीज़।
और जिन्हें इश्क का तप हो उन्हें क्या ताबीज़॥
उसके नीमा से जो मिलता मुझे एक तार “नज़ीर”।
तो बनाता उसे मैं अपने गले का ताबीज़॥