तन पर उस के सीम फ़िदा और मुँह पर मह दीवाना है-ग़ज़लें-नज़ीर अकबराबादी-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Nazeer Akbarabadi
तन पर उस के सीम फ़िदा और मुँह पर मह दीवाना है
सर से लय कर पाँव तलक इक मोती का सा दाना है
नाज़ नया अंदाज़ निराला चितवन आफ़त चाल ग़ज़ब
सीना उभरा साफ़ सितम और छब का क़हर यगाना है
बाँकी सज-धज आन अनूठी भोली सूरत शोख़-मिज़ाज
नज़रों में खुल खेल लगावट आँखों में शर्माना है
तन भी कुछ गदराया है और क़द भी बढ़ता आता है
कुछ कुछ हुस्न तो आया है और कुछ कुछ और भी आना है
जब ऐसा हुस्न क़यामत हो बेताब न हो दिल क्यूँकि ‘नज़ीर’
जान पर अपनी खेलेंगे इक रोज़ ये हम ने जाना है