डर-शंख घोष -Hindi Poetry-कविता-Hindi Poem | Kavita Shankha Ghosh
सी. आई. टी. रोड के मोड़ पर
कंकड़ों पर हाथ फैला
सोई हुई है मेरी बिटिया
सीने के पास रखा है तामचीनी का कटोरा।
आज दिन भर झरती रही बारिश उसकी भिक्षा पर
इसलिए मैं समझ नहीं पाया
पानी कौन-सा था, रुलाई कौन-सी!
उस दिन जब खो गई थी
बंद गली की भँवरों में
और रो उठी थी
जैसे रोती हैं अनाथ लड़कियाँ।
मैंने कहा था
क्यों डरती हो
मैं तो तेरे पीछे ही था।
लेकिन मुझे भी डर लगता है
जब सो जाती है वह
और उसके होंठों की कोरों पर
बादलों को चीरती
ढुलक आती है एक टुकड़ा रोशनी।
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