झील और तट के वृक्ष-आवाज़ों के घेरे -दुष्यंत कुमार-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Dushyant Kumar
यह बीच नगर में शीत
(नगर का अंन्तस्तल)
यह चारों बोर खजूरों, बाँसों के झुरमुट
अनगिनत वृक्ष
इस थोड़े से जल में
प्रतिबिम्बित हैं उदास कितने चेहरे !
सुनते हैं पहले कभी बहुत जल था इसमें
प्रतिदिन श्रद्धालु नगरवासी
इसके तट पर
जल-पात्र रिक्त कर जाते थे ।
अब मौसम की गर्मी या श्रद्धा का अभाव
कुछ भी हो लेकिन जल कम होता जाता है
बढ़ती जाती है पर संख्या
प्रतिबिम्बित होनेवाले चेहरों की प्रतिदिन ।
सुनते है दस या पाँच वृक्ष थे मुश्किल से
इस नगर-झील के आस-पास
ऐसा भी सुनते है पहले हँसती थीं ये
आकृतियाँ, जो होती जाती हैं अब उदास ।