झड़ी-बन्द शीशों के परे देख दरीचों के उधर-कुछ और नज्में -गुलज़ार-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Gulzar
बन्द शीशों के परे देख दरीचों के उधर
सब्ज पेड़ों पे घनी शाख़ों पे फूलों पे वहाँ
कैसे चुपचाप बरसता है मुसलसल पानी
कितनी आवाज़ें हैं, यह लोग हैं, बातें हैं मगर
ज़हन के पीछे किसी और ही सतह पे कहीं
जैसे चुपचाप बरसता है तसव्वुर तेरा