जीवन की सौगातें-डॉ. दिनेश चमोला शैलेश-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Dr. Dinesh Chamola Shailesh
अगर दिवस
कंबल हो जाते
और रजाई, रातें
फिर तो सपनों
से कर सकते
हम, मन ही मन बातें
अजब, हमारा
घर फिर होता
गजब, हमारी वर्दी
क्या मजाल
जो लग पाती फिर
चुटकी भर भी सर्दी
सूरज नाना
प्रहरी बन, गर
साथ निभाते अपना
फिर बचपन
का लोक अनोखा,
कितना होता अपना ?
इच्छाएँ, बन
पींग अनोखी
दुलरातीं, बिन पैसे
फिर अभाव
की बूढ़ी नानी
भला रुलाती कैसे ?
गर सपने
बन दूत हमारे
नभ में हमें उड़ाते
युगों- युगों
के बंदी दुख हम
खुश हो खूब छुड़ाते
चाहों सी
गर राहें मिलतीं
होते दिवस निराले
हम बच्चों के
खो जाते फिर
विपदा के दिन काले
घोड़े गर,
इच्छाएँ होतीं,
मंजिल हम पा जाते
फिर बचपन
के महल अनूठे
कितना हमें सजाते
सोने जैसे
दिन होते गर
चांदी जैसी रातें
फिर तो
बदलीं-बदलीं रहतीं
जीवन की सौगातें