जीअहु निरमल बाहरहु निरमल-शब्द-गुरू अमर दास जी-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Guru Amar Das Ji
जीअहु निरमल बाहरहु निरमल ॥
बाहरहु त निरमल जीअहु निरमल सतिगुर ते करणी कमाणी ॥
कूड़ की सोइ पहुचै नाही मनसा सचि समाणी ॥
जनमु रतनु जिनी खटिआ भले से वणजारे ॥
कहै नानकु जिन मंनु निरमलु सदा रहहि गुर नाले ॥੨੦॥੯੧੯॥
Pingback: शब्द-गुरू अमर दास जी-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Guru Amar Das Ji – hindi.shayri.page