ज़मीं दी है तो थोड़ा सा आसमाँ भी दे-ग़ज़लें -निदा फ़ाज़ली-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Nida Fazli
ज़मीं दी है तो थोड़ा सा आसमाँ भी दे
मिरे ख़ुदा मिरे होने का कुछ गुमाँ भी दे
बना के बुत मुझे बीनाई का अज़ाब न दे
ये ही अज़ाब है क़िस्मत तो फिर ज़बाँ भी दे
ये काएनात का फैलाव तो बहुत कम है
जहाँ समा सके तन्हाई वो मकाँ भी दे
मैं अपने आप से कब तक किया करूँ बातें
मिरी ज़बाँ को भी कोई तर्जुमाँ भी दे
फ़लक को चांद-सितारे नवाज़ने वाले
मुझे चराग़ जलाने को साएबाँ भी दे