जहाँ में आँख जो खोली फ़ना को भूल गये-ग़ज़लें-बृज नारायण चकबस्त-Hindi Poetry-कविता-Hindi Poem | Kavita Brij Narayan Chakbast
जहाँ में आँख जो खोली फ़ना को भूल गये
कुछ इब्तदा ही में हम इन्तहा को भूल गये
निफ़ाक़ गब्रो-मुसलमां का यूँ मिटा आखिर
ये बुत को भूल गए वो खुदा को भूल गये
ज़मीं लरज़ती है बहते हैं ख़ून के दरिया
ख़ुदी के जोश में बन्दे खुदा को भूल गये