जलवा बरपा वह ताबनाक हुआ-ग़ज़लें-ख़याल लद्दाखी-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Khayal Ladakhi
जलवा बरपा वह ताबनाक हुआ
मेरा साया ही जल के ख़ाक हुआ
कुछ न होवे है आदमी से मगर
जो हुआ ख़ैर वह तपाक हुआ
मैं वही मरहला ए पाकीज़ा
एक बोसे से जो न पाक हुआ
नामुकम्मल रफ़ू है एक अभी
इक गिरेबान फिर से चाक हुआ
उस ने देखा नहीं ‘ख़याल’ मुझे
जाने कैसे मैं फिर हलाक हुआ