जबड़े जीभ और दाँत-बुनी हुई रस्सी-भवानी प्रसाद मिश्र-Hindi Poetry-कविता-Hindi Poem | Kavita Bhawani Prasad Mishra
जबड़े जीभ और दाँत
जबड़े जीभ और दाँत दिल छाती और आँत
और हाथ पाँव और अँगुलियाँ और नाक
और आँख और आँख की पुतलियाँ
तुम्हारा सब-कुछ जाँचकर देख लिया गया है
और तुम जँच नहीं रहे हो
लोगों को लगता है
जीवन जितना
नचाना चाहता है तुम्हें
तुम उतने नच नहीं रहे हो
जीवन किसी भी तरह का इशारा दे
और नाचे नहीं आदमी उस पर तो यह
आदमी की कमी मानी जाती है इसलिए
जबड़े जीभ और दाँत दिल छाती और आँत
तमाम चीज़ों को इस लायक बनाना है
वे इसीलिए जाँची जा रही हैं
और तुम्हें डालकर रखा गया है बिस्तरे पर
यह सब तुम्हारे भले कि लिए है
इस तरह तुम नाचने में समर्थ बनाए जाओगे
यानी जब घर आओगे अस्पताल से
तब सब नाचेंगे कि तुम
हो गए नाचने लायक!