चोरी का गंगाजल- कविता -मनोहर लाल ‘रत्नम’ सहदेव-Hindi Poetry-कविता-Hindi Poem | Kavita Manohar Lal Ratnam Sahdev
महाकुम्भ से गंगाजल मैं,
चोरी करके लाया हूँ।
नेताओं ने कर दिया गन्दा,
संसद धोने आया हूँ॥
देश उदय का नारा देकर, जनता को बहकाते हैं,
छप्पन वर्ष की आज़ादी को, भारत उदय बताते हैं।
मंहगाई है कमर तोड़ती, बेरोजगारी का शासन,
कमर तलक कर्जे का कीचड, यह प्रगति बतलाते हैं॥
थोथे आश्वासन नेता के,
मैं बतलाने आया हूँ।
महाकुम्भ से गंगाजल मैं,
चोरी करके लाया हूँ॥
चोर बाजारी, घोटालों का, देश मेरे में डेरा है,
दलालों और लूटेरों ने ही देश मेरे को घेरा है।
कांड अनेकों को गये लेकिन, जन-गण-मौन हुए बैठा,
सूरज भी खामोश यहाँ पर, छाया घोर अँधेरा है॥
आज चौराहे बीच खड़ा मैं,
रोना रोने आया हूँ। महाकुम्भ से गंगाजल मैं,
चोरी करके लाया हूँ॥
धर्म नाम का परचम लहरा, हर मुखड़ा है डरा हुआ,
काशी, मथुरा और अवध में बाबर का विष भरा हुआ।
नेता सबको बहकाते हैं, भारत में घुसपैठ बढ़ी,
नोच-नोच कर देश को खाया, देश है गिरवी पड़ा हुआ॥
सत्ता के सिंहासन को मैं,
गीत सुनाने आया हूँ।
महाकुम्भ से गंगाजल मैं,
चोरी करके लाया हूँ॥
यह चोरी का गंगाजल, हर चोरी को दिखलायेगा,
नेताओं की ख़रमस्ती यह गंगा जल छुड़वायेगा।
अंग्रेजी का बीन बजाने वाले हों गूंगे ‘रत्नम’,
यह गंगाजल भारत में, हिंदी को मान दिलायेगा॥
भारत की भाषा हिंदी,
यह शोर मचाने आया हूँ।
महाकुम्भ से गंगाजल मैं,
चोरी करके लाया हूँ॥