चेतन प्रकाश-पंकज पुण्डीर-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Pankaj Pundir
पूर्व को बिसरा के, उत्तर से दक्षिण,
दक्षिण से पश्चिम फिर ओर पश्चिम,
उत्तरों की खोज़ में भटक रहा था मन ।
चेतन हुआ..हुआ प्रकाश..
क्या बिछड़ गया जो खोजते हो?
क्यूँ दीप लिये तुम दीपक को ढूंढते हो?
स्मरण करो क्या नही दिखाया था?
तुममें ही..पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश ।।