चुनिंदा अशआर-अशफ़ाक उल्ला खाँ -Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Ashfaqulla Khan ,
आनी थी हमको मौत सो आई वतन से दूर,
अब देखना ये है कि ये मिट्टी कहाँ की है।
बहुत ही जल्द टूटेंगी गुलामी की ये जंजीरें,
किसी दिन देखना आजाद ये हिन्दोस्तां होगा।
जिंदगी बादे-फना तुझको मिलेगी हसरत,
तेरा जीना तेरे मरने की बदौलत होगा।
कौन वाकिफ था कि यूं सर पे बला आएगी,
बैठे बिठलाए हुकूमत यह गजब ढाएगी।
तंग आकर हम भी उनके जुल्म से बेबाद से,
चल दिए सूये-अदम जिन्दाने फैजाबाद से।
जबकि गैरों से उन्हें इकदम की भी फुरसत नहीं,
फिर वह क्यों मिलने लगे अब हसरते नाशाद से।
बाइसे नाज जो थे अब वह फ़साने न रहे,
जिन तरानों में मजा था, वह तराने न रहे।
घर छूटा बार छूटा अहले-वतन छूट गए,
माँ छूटी बाप छूटा भाई-बहन छूट गए।
अपना यह अहद सदा से कि मर जाएंगे,
नाम माता तेरे उश्शाक में कर जाएंगे।
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