चिड़ियों की तस्बीह- कविता (धार्मिक)-नज़ीर अकबराबादी-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Nazeer Akbarabadi
वक़्त सहर की रूहें क्या हूं हूं हूं हूं करती हैं।
हूं हूं हूं हूं कर ज़िक्र कुन और फ़याकूं करती हैं।
मुर्गे बोलें कुकडू़ कुकडू़ मुर्गियां कूं कूं करती हैं।
तूतिया भी सब याद में उसकी मत्तूं मत्तूं करती हैं।
सांझ सबेरे चिड़ियां मिलकर चूं चूं चूं चूं करती हैं।
चूं चूं चूं चूं चूं चूं क्या? सब बेचूं बेचूं करती हैं॥1॥
पंख हो या गुड पंख उसी के ग़म के तप में तपते हैं।
उनका और सीमुर्ग़ उसी की फर्क़त बीच तड़पते हैं।
सारस, गिद्ध, हवासिल, बुज्जे, बगले पंख कलपते हैं।
पंख पखेरू जितने हैं, सब नाम उसी का जपते हैं।
सांझ सबेरे चिड़ियां मिलकर चूं चूं चूं चूं करती हैं।
चूं चूं चूं चूं चूं चूं क्या? सब बेचूं बेचूं करती हैं॥2॥
कु़मरी बोले हक़ सर्रा, बुलबुल बिस्मिल्लाह।
कबकटि टेरी चारों कुल और तीतर भी सुबहानअल्लाह।
दादुर, मोर, पपीहे, कोयल, कूक रहे अल्लाह अल्लाह।
फ़ाख़्ता कू कू, तीहू हू हू, तोते बोलें हक़ अल्लाह।
सांझ सबेरे चिड़ियां मिलकर चूं चूं चूं चूं करती हैं।
चूं चूं चूं चूं चूं चूं क्या? सब बेचूं बेचूं करती हैं॥3॥
शकरा, चैख और लग्घड़, बाशे और तुर्मती, बाज कोई।
कूंज, कबूतर, सब्ज़क झांपू, कलकल, सामार चोई॥
लाल पढ़े हैं सुम्मुन बुकमुन, जग पहने पोशाक सोई।
पिदड़ी, पिद्दी, पोदने, शक्करख़ोरे बोलें तोई तोई।
सांझ सबेरे चिड़ियां मिलकर चूं चूं चूं चूं करती हैं।
चूं चूं चूं चूं चूं चूं क्या? सब बेचूं बेचूं करती हैं॥4॥
चील कतई यिस्सिजिल कहे चलूं चलूं मत जान मियां।
कौए कांय् कांय् करते हैं ऐलान कमा कान मियां।
भर भर बोले मुर्ग़ाबी, “कुल्लोमनअलैहा फ़ान” मियां।
जितने पंख पखेरू हैं, सब पढ़ते हैं कुरआन मियां।
सांझ सबेरे चिड़ियां मिलकर चूं चूं चूं चूं करती हैं।
चूं चूं चूं चूं चूं चूं क्या? सब बेचूं बेचूं करती हैं॥5॥
हंस हुमा, सुखऱ्ाब, बदखें, बोलें या रहमान मियां।
सारू हरियल और लटूरे धैयड़ या हन्नान मियां।
कु़क्नस तीतर, चकवा चकवी बोलें या मन्नान मियां।
हुद हुद बोलें ‘अहद-अहद’, कुछ तू भी तो कर ध्यान मियां।
सांझ सबेरे चिड़ियां मिलकर चूं चूं चूं चूं करती हैं।
चूं चूं चूं चूं चूं चूं क्या? सब बेचूं बेचूं करती हैं॥6॥
बूम चुग़द सब्ज़का अबाबील और चकोरे शाम चिड़ी।
खंजन झय्यां लायं कुलंग और गूगाई की धूम पड़ी।
तितली टिड्डी, डांस, भभीरी कतरी, भौंरी और बड़ी।
मक्खी, मच्छर, पिस्सू, भुनगे, बोल रहे सब घड़ी-घड़ी।
सांझ सबेरे चिड़ियां मिलकर चूं चूं चूं चूं करती हैं।
चूं चूं चूं चूं चूं चूं क्या? सब बेचूं बेचूं करती हैं॥7॥
तन मन और लमढेंक ममोला हक़ हक़ तार पिरोते हैं।
अघन वये चंडोल, अबल़के याद में उसकी रोते हैं।
तायर तो सब तुख़्मेमुहब्बत उसका दिल में बोते हैं।
पंछी उसकी याद करें हम पांव पसारे सोते हैं।
सांझ सबेरे चिड़ियां मिलकर चूं चूं चूं चूं करती हैं।
चूं चूं चूं चूं चूं चूं क्या? सब बेचूं बेचूं करती हैं॥8॥
किस किस का लूं नाम ग़रज, हैं जितने तायर खुर्दो-कबीर।
कोई कहे या ‘रब्बेतवाना’ कोई कहे या ‘रब्बेक़दीर’।
पंखी तो सब याद करें, और हम गफ़लत में रहें असीर।
हमसा गा़फ़िल दुनिया में, अब कोई न होगा आह ‘नज़ीर’।
सांझ सबेरे चिड़ियां मिलकर चूं चूं चूं चूं करती हैं।
चूं चूं चूं चूं चूं चूं क्या? सब बेचूं बेचूं करती हैं॥9॥
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