चल औघट घाट प यार ज़रा-वंशीवट सूना है -गोपालदास नीरज-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Gopal Das Neeraj
चल औघट घाट प यार ज़रा, क्या रक्खा आलमगीरी में
जो आये मज़ा फ़क़ीरी में, वो मस्ती कहाँ अमीरी में
अनजान सफ़र में जीवन के दुनिया ये मुसाफ़िरखाना है
अपनी-अपनी बारी सबको इस भोग-भवन से जाना है
चाहे सिक्कों से भर झोली, चाहे सोने के पहन कड़े
वो सब मिट्टी हो जाना है, जो तेरे पास ख़ज़ाना है।
जब तक पड़ाव है पड़ा यहाँ, कुछ प्यार जोड़,कुछ प्यार लुटा
वो स्वाद न छप्पन भोगों में, जो स्वाद है प्रेम-पंजीरी में ।
चल औघट घाट प…
कुर्सी की ग़ुलामी करके, तू अपना सिंहासन भूल गया,
मन्दिर-मस्ज़िद में जा-जाकर, उस यार का आँगन भूल गया,
इक यासो-हवस के चक्कर में, ऐसा भूला, यूँ भरमाया,
हर दर्पण में मुखड़ा देखा, पर दिल का दर्पण भूल गया,
दुनिया से लड़ाई बहुत नज़र, अब अपने से भी नज़र मिला,
जो रस है अपनी आँखों में, वो रस न कली कश्मीरी में ।
चल औघट घाट प…
कैसे-कैसे, किस-किस रंग में, कलदार की धुन पर तू नाचा,
इस पार नचा, उस पार नचा, मँझधार की धुन पर तू नाचा,
जीवन भर नाचा किया मगर समझा तू सबको नचाता है,
संसार को नाच नचाने में, संसार की धुन पर तू नाचा,
सब ताल-धुनों पर नाच चुका, अब दिल की धुन पर नाच ज़रा,
जो राग है दिल की धड़कन में, वो राग न किसी नफ़ीरी में ।
चल औघट घाट प…
तू क़ैद रहा हरदम प्यारे ! कपड़ों में, कभी दीवारों में,
शब्दों में कभी, भाषा में कभी, नक़्शों में कभी, अख़बारों में,
अब तो “घूँघट-पट खोल ज़रा”, इस क़ैदे-कफ़स से बाहर आ,
तू ही न रहेगा तू, वर्ना इन मेलों इन बाज़ारों में,
सारा आकाश है ताज तेरा, सारा भूगोल है तख़्त तेरा,
बस छोड़ जहाँगीरी, आजा हम मस्तों की जागीरी में ।
चल औघट घाट प…
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