गोदना-वालेस स्टीवेन्स-देशान्तर-धर्मवीर भारती-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Dharamvir Bharati
रोशनी मकड़ी है
जल पर रेंगती है
बर्फ़ के किनारों पर
तुम्हारी पलकों के तले
और वहाँ अपना जाला बुनती है
अपने दो जाले
तुम्हारे नेत्रों के जाले
हिलगे हैं, तुम्हारे
माँस और अस्थियों से
जैसे छत की कड़ियों या घासों से
तुम्हारे नेत्रों के डोरे हैं
जल की सतह पर
बर्फ़ के छोरों पर।
Pingback: धर्मवीर भारती-HindiPoetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Dharamvir Bharati – hindi.shayri.page