गुलाबी गाल तेरे-ग़ज़लें -मौलाना रूमी -Hindi Poetry-कविता-Hindi Poem | Kavita Maulana Rumi Poetry
गुलाबी गाल तेरे जब देख पाते हैं
होके खुशगवार पत्थरों में राह पाते हैं
इक बार घूँघट ज़रा फिर से हटा दो
दंग होने का दीवानों को मज़ा दो
ताकि आलिम समझी-बूझी राह भूलें
हुशियारों की अक़ल की हिल जाएँ चूलें
पानी बन जाय मोती, तुम्हारा अक्स पड़ना
ताकि आतिश छोड़ दे जलना, जंग करना
तुम्हारे हुस्न के आगे चाँद से मुँह मोड़ लूँ
जन्नत की झिलमिलाती रौशनियां छोड़ दूँ
तुम्हारे चेहरे के आगे न बोलूं – आईना है
ये बूढ़ा आसमां तो जंग जैसे खा गया है
इस जहाँ में सांस तुमने फूँक दी है
इस बेचारे को नई एक शकल दी है
ऐ उशना साज़ में कुछ तान लाओ
पैनी आँखों के लिए कुछ ख़ाहिश जगाओ
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