गुमशुदा-आखिर समुद्र से तात्पर्य-नरेश मेहता-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Naresh Mehta
रजिस्टर में वह नहीं
उसका हस्ताक्षर था,
सीट पर वह नहीं
उसका कोट था,
घर में वह नहीं
घूस का अम्बार था
स्वयं भी वह कहाँ,
फाइलें दबाये काँइयाँ बाबू था–
तब वह कहाँ था?
यह कोई नहीं जानता–
न उसके अफसर
न उसके मातहत
और न काम से चक्कर लगाते लोग
कि वह कहाँ था?
एफ० आई० आर० लिखवायी तो थी गुमशुदा की
लेकिन:गुमशुदा गुमनाम नहीं होता।