गुब्बारे-रात पश्मीने की-गुलज़ार-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Gulzar
इक सन्नाटा भरा हुआ था,
एक गुब्बारे से कमरे में,
तेरे फोन की घंटी के बजने से पहले।
बासी सा माहौल ये सारा
थोड़ी देर को धड़का था
साँस हिली थी, नब्ज़ चली थी,
मायूसी की झिल्ली आँखों से उतरी कुछ लम्हों को–
फिर तेरी आवाज़ को, आखरी बार “खुदा हाफिज़”
कह के जाते देखा था!
इक सन्नाटा भरा हुआ है,
जिस्म के इस गुब्बारे में,
तेरी आखरी फोन के बाद–!!