गुज़रते हैं हम-ग़ज़लें-मोहनजीत कुकरेजा -Hindi Poetry-कविता-Hindi Poem | Kavita Mohanjeet Kukreja Ghazals
ठोकरों से ही सीख कर निखरते हैं हम
नाकामी से क्यों इस क़दर डरते हैं हम!
उतार-चढ़ाव तो ज़िन्दगी का हिस्सा हैं
कभी डूबते हैं और कभी उभरते हैं हम!
एक अजब सा रिश्ता है दोनों के बीच
टूटता अगर दिल है तो बिखरते हैं हम!
मिट्टी है सब मिट्टी में सबको मिलना है
किस लिए फिर यूँ बनते संवरते हैं हम!
उम्र गुज़र गई यह समझने समझाने में
वक़्त तो ठहरा रहता है गुज़रते हैं हम!
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