गीत-आघात-शरीर कविता फसलें और फूल-भवानी प्रसाद मिश्र-Hindi Poetry-कविता-Hindi Poem | Kavita Bhawani Prasad Mishra
तोड़ रहे हैं
सुबह की ठंडी हवा को
फूट रही सूरज की किरनें
और
नन्हें-नन्हें
पंछियों के गीत
मज़दूरों की
काम पर निकली टोलियों को
किरनों से भी ज़्यादा सहारा
गीतों का है शायद
नहीं तो
कैसे निकलते वे
इतनी ठंडी हवा में !