गीतिका (४)-शंकर कंगाल नहीं-शंकर लाल द्विवेदी -Hindi Poetry-कविता-Hindi Poem | Kavita Shankar Lal Dwivedi
मत यों उदास हो मन, मेरी साधना में बल है।
भगवान भी मिलेगा, मेरी भावना विमल है।।
सब साथ दे उठेंगे, मेरी योजना सरल है।
सब रो उठेंगे सचमुच, मेरी वेदना सकल है।।
सब नीड़ मान लेंगे, मेरी सर्जना सफल है।
बस पातकी जलेंगे, मेरी अर्चना अनल है।।
सब आँसुओं की माया, जो आँख हैं सरोवर।
रवि क्यों नहीं उगेगा, मेरी कल्पना कमल है।।
जग-सिन्धु के किनारे, सब देवता विकल हैं।
‘शंकर’ हूँ, पी रहा हूँ, मेरे पात्र में गरल है।।