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गीतिका छंद-ग़ज़लें -रमेशराज -Hindi Poetry-कविता-Hindi Poem | Kavita Rameshraj Ghazals Part 2
आप हैं जो साथ मेरे ज़िन्दगी-सी रोज है
आप हैं जो साथ मेरे ज़िन्दगी-सी रोज है
ज़िन्दगी में रागिनी-सी, बाँसुरी-सी रोज है।
हास भी है, रास भी है, साथ भी है आपका
दीप जैसी, खूब कैसी लौ जली-सी रोज है।
कौन जाये छोड़ के ये, तोड़ के ये मित्रता
खिलखिलायें, मुस्करायें वो खुशी-सी रोज है।
नैन प्यारे, बैन प्यारे, रूप जैसे धूप है
रात को भी दूध जैसी चाँदनी-सी रोज है।
‘राज’ प्यारी है हमारी रीति सारी आपसी
प्रीति कैसी, जादुई-सी, या रुई-सी रोज है।
एक उलझन में रहे मन, नैन सावन आज भी
एक उलझन में रहे मन, नैन सावन आज भी
प्यार की, अभिसार की हर याद चन्दन आज भी।
आपके स्पर्श का उत्कर्ष स्मृति में जगे
तेज होती, धीर खोती मीत धड़कन आज भी।
पास आकर, मुस्कराकर, बात कहना रस-भरी
दे प्रचुर, सुख-सा मधुर वह बोल-गुंजन आज भी।
आपका ये जाप दे संताप तो हम क्या करें
नित सिहरता, याद करता आपको मन आज भी।
‘राज’ से तुम दूर बनकर नूर का दस्तूर क्यों?
चाहते हम, ये हटे तम, किन्तु अनबन आज भी।
हम दहें, कितना सहें, इस एकतरफा प्यार को
हम दहें, कितना सहें, इस एकतरफा प्यार को
वो वफा जाने न माने, सिर्फ ताने रार को।
बेकली में नित जली पगली हमारी ज़िन्दगी
नैन बरसे, खूब तरसे यार के दीदार को।
दीप की बाती जलाते, वो निभाते दोस्ती
दूर करते, नूर करते वे कभी अँधियार को।
अब लबे-दम ज़िन्दगी है, आँख भी है बे-रवाँ
क्या दवा दें या हवा दें, इस दिले बीमार को।
हम गुलेलें, रोज़ झेलें, खेल खेलें प्रीति का
‘राज’ की परवाज घायल, मन विकल अभिसार को।
पत्थरों ने मोम खुद को औ’ कहा पत्थर हमें
पत्थरों ने मोम खुद को औ’ कहा पत्थर हमें
प्रेम में जज़्बात के कैसे मिले उत्तर हमें।
आप कहते और क्या जब आपने डस ही लिया
अन्ततः कह ही दिया अब आपने विषधर हमें।
इस धुए का, इस घुटन का कम सताता डर हमें
तू पलक थी और रखती आँख में ढककर हमें।
साँस के एहसास से छूते कभी तुम गन्ध को
आपने खारिज किया है आँख से प्रियवर हमें।
आब का हर ख्वाब जीवन में अधूरा रह गया
देखने अब भी घने नित प्यास के मंजर हमें।
एक जलती रेत के इतिहास का मैं गीत हूँ
एक जलती रेत के इतिहास का मैं गीत हूँ
हो सके तो तृप्ति दे दो, प्यास का मैं गीत हूँ।
आज चुन ले खूब मोती भोर की पहली किरन
रात-भर की ओस-भीगी घास का मैं गीत हूँ।
मैं कहानी पतझरों की अब किसी से क्यों सुनूँ
तू मुझे महसूस कर, मधुमास का मैं गीत हूँ।
तू परिन्दे की तरह मिलने कभी तो मीत आ
दूर तक फैले हुए विश्वास का मैं गीत हूँ।
लय समय की, बात जय की, सुन रहा, मैं बुन रहा
आस का, उल्लास का, मधुप्रास का मैं गीत हूँ।
नैन प्यारे ये तुम्हारे, चाँद-तारे-से प्रिये
नैन प्यारे ये तुम्हारे, चाँद-तारे-से प्रिये।
इस लड़कपन, बंक चितवन में इशारे-से प्रिये!
प्यास देते, आस देते, खास देते रससुध
हैं अधर पर सुर्ख सागर के नजारे-से प्रिये।
होंठ हिलते तो निकलते बोल मिसरी में घुले
नाज-नखरों से भरे अंदाज प्यारे-से प्रिये।
रूप की ये धूप पीकर हो गये हम गुनगुने
और क्या इसके सिवा हम लें तुम्हारे से प्रिये।
पास आओ, मुस्कराओ, मत जताओ बेरुखी
दर्द अपने और सपने हैं कुँआरे-से प्रिये।
रात बीते, बात बीते गम-भरी ये तम-भरी
आप आयें, मुस्करायें, दे उजारे-से प्रिये।