गन्ध-देखना एक दिन-नरेश मेहता-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Naresh Mehta
कमरे में गन्ध थी
गुलाब की,
पर फूल ने कहा–
केवल कल तक ही,
आज जो यह गन्ध है
वह मेरी नहीं
उस स्पर्श की
जिसने मेरे फूल को
तुममें गुलाब कह टाँका था।
क्या तुम
उस स्पर्शकर्ता को नहीं जानतीं?