गगन बजाने लगा जल-तरंग फिर यारो-ग़ज़लें -गोपालदास नीरज-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Gopal Das Neeraj
गगन बजाने लगा जल-तरंग फिर यारो,
कि भीगें हम भी ज़रा संग-संग फिर यारों ।
यह रिमझिमाती निशा और ये थिरकता सावन,
है याद आने लगा इक प्रसंग फिर यारो ।
किसे पता है कि कबतक रहेगा ये मौसम,
रख है बाँध के क्यूँ मन-कुरंग फिर यारो ।
घुमड़-घुमड़ के जो बादल घिरा अटारी पर,
विहंग बन के उडी इक उमंग फिर यारो ।
कहीं पे कजली कहीं तान उठी बिरहा की,
ह्रदय में झांक गया इक अनंग फिर यारो ।
पिया की बांह में सिमटी है इस तरह गोरी,
सभंग श्लेष हुआ है अभंग फिर यारो ।
जो रंग गीत का बलबीर जी के साथ गया
न हमने देखा कहीं वैसा रंग फिर यारो ।